Sunday, January 17, 2016

आगे सफर था और पीछे हमसफर था


आगे सफर था और पीछे हमसफर था
रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हमसफर छूट जाता

मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी
दिल तू ही बता,उस वक्त मैं कहाँ जाता

मुद्दत का सफर भी था और बरसो का हमसफर भी था
रूकते तो बिछड जाते और चलते तो बिखर जाते

यूँ समँझ लोप्यास लगी थी गजब की मगर पानी मे जहर था
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते

बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए

वक़्त ने कहा काश थोड़ा और सब्र होता
सब्र ने कहा काश थोड़ा और वक़्त होता

"शिकायते तो बहुत है तुझसे जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"

जब लगे पैसा कमाने, तो समझ आया,
शौक तो मांबाप के पैसों से पुरे होते थे,
अपने पैसों से तो सिर्फ जरूरतें पुरी होती है।

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